कोया पूनेम क्या है और गोंड समाज में इसका क्या महत्व है?

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कोया पूनेम गोंड समाज का मूल धर्म और दर्शन है, जिसे पहांडी परी कुपार लिंगो ने स्थापित किया था।
यह प्रकृति पूजा, पूर्वजों की श्रद्धा और सामुदायिक एकता पर आधारित है।
यह गोंड समाज को 12 सगा (गोत्र) में विभाजित करता है, जो उनकी सामाजिक संरचना को व्यवस्थित करता है।
यह उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से हिंदू धर्म से अलगाव में। 

 कोया पूनेम का परिचय:

कोया पूनेम, जिसे गोंडी पूनेम भी कहा जाता है, गोंड समुदाय का मूल धर्म है, जिसका अर्थ है "प्रकृति का मार्ग"। इसे पहांडी परी कुपार लिंगो ने स्थापित किया था, जो एक पौराणिक पूर्वज और देवता हैं। यह धर्म गोंडों की सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहचान को परिभाषित करता है, जिसमें प्रकृति और पूर्वजों की पूजा शामिल है।

सामाजिक और धार्मिक महत्व:
कोया पूनेम गोंड समाज को 12 सगा (गोत्र) में विभाजित करता है, जिसमें 750 कुल (क्लान) शामिल हैं, जो उनके वैवाहिक और सामाजिक संबंधों को व्यवस्थित करता है। यह धर्म बरादेव (उच्च देवता) और विभिन्न कुल तथा गांव के देवताओं की पूजा पर केंद्रित है, साथ ही प्रकृति, जैसे सजा वृक्ष और महुआ पौधे, की वंदना भी शामिल है।

सांस्कृतिक पहचान:
यह गोंड समाज को हिंदू धर्म से अलग पहचान देता है, और सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना है कि गोंड हिंदू नहीं हैं। कोया पूनेम गोंडवाना की प्राचीन परंपराओं को संरक्षित करता है और आधुनिक चुनौतियों, जैसे सांस्कृतिक आत्मसात, का सामना करने में मदद करता है।

कोया पूनेम और गोंड समाज में इसका महत्व

कोया पूनेम क्या है और गोंड समाज में इसका क्या महत्व है?




कोया पूनेम, जिसे गोंडी पूनेम भी कहा जाता है, गोंड समुदाय का मूल धर्म और दर्शन है, जो उनकी सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहचान का आधार है। यह धर्म "प्रकृति का मार्ग" के रूप में जाना जाता है और पहांडी परी कुपार लिंगो द्वारा स्थापित किया गया था, जो गोंड समाज के लिए एक पौराणिक पूर्वज और देवता हैं। निम्नलिखित वर्गों में इसकी विस्तृत समझ दी गई है:

उत्पत्ति और इतिहास
कोया पूनेम की स्थापना कुपार लिंगो ने की थी, जो गोंड समाज के लिए एक संगठनकर्ता और दार्शनिक थे। किंवदंती के अनुसार, कुपार लिंगो ने गोंड समाज को संगठित किया और उनके लिए एक आचार संहिता और दर्शन स्थापित किया, जिसे गोंडी पूनेम कहा जाता है। यह दर्शन गोंड समाज के लिए एक जीवनशैली के रूप में कार्य करता है, जो उनके सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को निर्देशित करता है। गोंड लोगों का इतिहास 14वीं से 18वीं सदी तक शक्तिशाली गोंड राजवंशों द्वारा शासित गोंडवाना क्षेत्र से जुड़ा है, और कोया पूनेम इस क्षेत्र की प्राचीन परंपराओं का हिस्सा रहा है।

सामाजिक संरचना
कोया पूनेम गोंड समाज को 12 सगा (गोत्र) में विभाजित करता है, जिनमें कुल 750 कुल (क्लान) शामिल हैं। प्रत्येक सगा में रक्त संबंधों से जुड़े कुल होते हैं, जो गोंड समाज के वैवाहिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों को व्यवस्थित करता है। यह गोत्र प्रणाली गोंडों की पहचान का एक प्रतीक है और उनके सामुदायिक जीवन का आधार है। धार्मिक समारोहों में बैगा (गांव के पुजारी), भुमका (कुल पुजारी), और कासर-गैता (गांव के नेता) जैसे महत्वपूर्ण आंकड़े शामिल होते हैं।

धार्मिक विश्वास और प्रथाएं
कोया पूनेम में विभिन्न धार्मिक विश्वास और प्रथाएं शामिल हैं, जो गोंड समाज की आध्यात्मिकता को परिभाषित करती हैं:
  • देवताओं की पूजा: गोंड समाज एक उच्च देवता, बरादेव (या भगवान, कुपार लिंगो, बड़ादेव, परसा पेन) की पूजा करता है, जो छोटे देवताओं, कुल देवताओं, गांव के देवताओं, पूर्वजों और टोटम्स पर नियंत्रण रखता है। प्रत्येक कुल का अपना परसा पेन होता है, जो एक महान देवता है, जिसकी पूजा के लिए एक पारधान (बार्ड) द्वारा वाद्य यंत्र बजाया जाता है। गांव के देवताओं में अकी पेन (गांव का रक्षक) और अनवल (गांव की मातृ देवी) शामिल हैं।
  • प्रकृति पूजा: गोंड समाज प्रकृति की पूजा करता है, विशेष रूप से सजा वृक्ष (टर्मिनालिया एलिप्टिका) और महुआ पौधे (मधुका लॉन्गिफोलिया) को, जो विभिन्न रीति-रिवाजों में उपयोग किए जाते हैं। वर्षा देवताओं की पूजा भी महत्वपूर्ण है, जिसमें पूर्व-वर्षा शिकार समारोहों में रक्त की मात्रा वर्षा की मात्रा का संकेत देती है।
  • पूर्वजों की श्रद्धा: पूर्वजों की आत्माओं को महत्व दिया जाता है, और उनकी पूजा समाज के लिए आवश्यक मानी जाती है।
  • अन्य देवता: गोंड समाज माता काली कंकाली (पूर्वज माता, महाकाली से जुड़ी), दुल्हा-पेन (विवाह का देवता), गंसम (बाघों से रक्षा करने वाला देवता), हरदुल (विवाह का देवता), भीमसेन/भीमाल (शक्ति और पृथ्वी का देवता), नट अवल/धरती माता (उर्वरता की देवी), भूमि (पृथ्वी, मानवता की माता), और अन्य देवताओं की पूजा करता है।
दर्शन और नैतिकता
कोया पूनेम में कुछ महत्वपूर्ण दार्शनिक सिद्धांत शामिल हैं:
  • मुंजोक: यह अहिंसा, सहयोग और आत्मरक्षा को बढ़ावा देता है।
  • सल्ला और गंग्रा: ये सिद्धांत क्रिया और प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो हिंदू धर्म के कर्म के सिद्धांत से थोड़ा मिलता-जुलता है।
  • फ्रेट्रियल समाज: गोंड धर्म में यह विश्वास है कि समाज को संघर्ष और असामंजस्य से बचने के लिए फ्रेट्रियल (कुल-आधारित) समाज में रहना चाहिए, जो समुदाय की रक्षा, प्रकृति के साथ सद्भाव और टोटम्स को छोड़कर जानवरों को खाने की अनुमति देता है।
रीति-रिवाज और त्योहार
गोंड समाज में विभिन्न त्योहार और रीति-रिवाज हैं, जैसे पोला, फाग और दससेरा, जो उनके धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का हिस्सा हैं। इनमें गांव के देवताओं की पूजा, विवाह समारोह और अन्य सामुदायिक उत्सव शामिल हैं। विशेष रूप से, विवाह और प्रथम समारोहों में सजा वृक्ष और महुआ पौधे का उपयोग किया जाता है।

गोंड समाज में कोया पूनेम का महत्व
कोया पूनेम गोंड समाज के लिए केवल एक धर्म नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जो उनकी सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पहचान को परिभाषित करती है। इसका महत्व निम्नलिखित है:
महत्व का क्षेत्र विवरण
सांस्कृतिक पहचान कोया पूनेम गोंड समाज की विशिष्ट पहचान को बनाए रखता है और उन्हें हिंदू धर्म से अलग करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी माना है कि गोंड हिंदू नहीं हैं।
सामाजिक संरचना यह गोंड समाज को 12 सगा (गोत्र) में विभाजित करता है, जो उनके वैवाहिक और सामाजिक संबंधों को व्यवस्थित करता है।
प्रकृति और पूर्वज पूजा यह समुदाय को पर्यावरण संरक्षण और अपनी जड़ों से जुड़ाव बनाए रखने की प्रेरणा देता है।
नैतिक और आध्यात्मिक मार्गदर्शन यह गोंडवाना की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखते हुए नैतिकता और सामुदायिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
आधुनिक प्रासंगिकता यह गोंड समाज को उनकी ऐतिहासिक जड़ों से जोड़कर सांस्कृतिक आत्मसात और पहचान के संरक्षण का सामना करने में मदद करता है।

कोया पूनेम गोंड समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से जब वे बाहरी सांस्कृतिक प्रभावों, जैसे हिंदू धर्म, के खिलाफ अपनी पहचान को संरक्षित करने का प्रयास करते हैं। कारवां पत्रिका के अनुसार, कोया पूनेम कोयतुर समुदाय की भाषा और संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयासों का हिस्सा है, जिसमें 2014-2017 के बीच सात राज्यों में कार्यशालाओं का आयोजन शामिल है।

समकालीन संदर्भ
आधुनिक समय में, कोया पूनेम गोंड समाज के लिए एक प्रतिरोध का प्रतीक है, जैसा कि अल जजीरा के लेख में उल्लेख किया गया है, जहां रीना जैसे सदस्यों ने महसूस किया कि उनकी संस्कृति और विश्वास प्रणाली, जिसमें कोया पूनेम शामिल है, धीरे-धीरे नष्ट हो रही थी। यह उनकी पहचान के प्रतीकों, जैसे जल, जंगल, जमीन, को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष
कोया पूनेम गोंड समाज का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आधार है, जो उनकी प्राचीन परंपराओं, प्रकृति के प्रति श्रद्धा और सामुदायिक एकता को दर्शाता है। यह न केवल उनकी धार्मिक विश्वासों को परिभाषित करता है बल्कि उनके सामाजिक ढांचे और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूती प्रदान करता है। कोया पूनेम गोंडवाना की विरासत को संरक्षित करने और समुदाय को उनकी विशिष्ट पहचान बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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